औरंगजेब के परिवार की ईद
(यह भारतीय सशस्त्र बलों और पुलिस के सभी शहीदों को समर्पित एक काल्पनिक कहानी है)
डॉ। जवाहर सुरिसेट्टी की एक कहानी (www.drjawaharsurisetti.com)
वो दिन ईद-अल-अधा था और मैं आतंकवादी हमलों और पथराव की घटनाओं के कारण इस दौरे को छोड़ने के अनुरोध के बीच कश्मीर की यात्रा पर एक पर्यटक था। मैं खुशी-खुशी बातचीत करते हुए अपने दोस्तों के साथ चरार-ए-शरीफ की ओर जा रहा था, तभी मैंने देखा कि एक छोटा लड़का सड़क के किनारे बैठा है और बिलख बिलख कर रो रहा है। एक मनोवैज्ञानिक के रूप में, मुझे इस रोने के कारण जानने में दिलचस्पी थी। एक ओर, अपने माता-पिता के साथ चिपके हुए बच्चे फुदकते हुए चरार की ओर बढ़ रहे । श्रद्धांजलि अर्पित करने भीड़ अपना रास्ता दरगाह की ओर बना रही थी ।चरार ए शरीफ़ इस्लाम के पवित्र स्थानों में से एक है लेकिन सभी धर्मों के लोग इस पर मत्था टेकते हैं । कश्मीर में तनाव की परवाह किए बगैर यह उल्लास रास्तों पर दिखाई दे रहा था। यह उत्सव का समय था। लेकिन इस उत्सव के दिन में, रोने वाला छोटा बालक थोडा अटपटा लग रहा था।
मैंने अपने दोस्तों को आगे बढ़ने के लिए कहा मैं पीछे रुक गया और छोटे लड़के की ओर बढा । मैं उस चबूतरा पर बच्चे के पास जाकर बैठ गया। मैं तब तक शांत रहा जब तक बच्चे को मेरी उपस्थिति का एहसास नहीं हुआ। मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा। उसने धीरे-धीरे आँसूओं से भरी अपनी आँखें उठाईं ।आँसू नीचे की ओर लुढ़के रहे थे और उसके गीले गालों पर सुनहरी धूप चमक रही थी। यहां तक कि उसके आंसू भी दिव्य लग रहे थे। मासूम चेहरे पर आशा की नज़र थी क्योंकि उसने मुझे समझने की कोशिश की और उसमें उम्मीद जाग उठा था। मैंने पूछा, "क्या हुआ, रो क्यों रहे हो?"
लड़का लगभग 5-6 साल का था। उसने अपनी नाक से नीचे गिरते हुए आँसुओं को चाटा और कहा, "सभी बच्चे अपने माता-पिता के साथ ईद का आनंद ले रहे हैं और मैं अकेला हूँ।"
"आपके माता-पिता के साथ क्या हुआ, वे कहाँ हैं?" मैंने पूछा ।
"मेरे पिता एक हवलदार थे और एक आतंकवादी हमले के दौरान उन्हें गोली मार दी गई थी।"
"और तुम्हारी माँ?"
"वह अन्य लोगों के घरों में बर्तन और कपड़े धो रही हैं ।आज ईद होने के कारण उनके पास और भी काम हैं, इसलिए वह मेरे साथ नहीं है।" छोटे लड़के ने समझाया।
अब तक वह मेरी उपस्थिति से सहज हो गया था।
मैंने पूछा, "तुम क्या करते अगर तुम्हारे पिता साथ होते ?”
लड़के की आँखें अतीत की यादों में चमक उठीं, उसने कहा, "मेरे पिता का हाथ पकड़ कर इस सड़क पर चलता ।”
मैंने उठकर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया। उसने झटपट पकड़ लिया और उठ गया। उसके हाथों की कोमलता मनमोहक थी। दूसरे हाथ से मैंने उसके आँसू पोंछे। वो मुस्कुराया । जैसे ही हम दरगाह की ओर बढ़े, वह मुस्कुरा रहा था मगर आँसू उसके गालों को सहला रहे थे। मुझे समय समझ आया कि भारतीय सशस्त्र बलों और पुलिस के शहीदों के परिवारों पर क्या बीतती होगी और उन्हें अपने प्रियजनों के नुकसान को पूरा करने के लिए मुहम्मद, राम, गुरु नानक या क्राइस्ट के हाथ की जरूरत है। कश्मीर की यह यात्रा हरे भरे पहाड़ों, झीलों और कश्मीर की सुंदरता के मामले में अप्रासंगिक थी। यह यात्रा एक छोटे लड़के के नरम और छोटे हाथों के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की यात्रा थी जो युद्ध की योनि को सहन कर रहा था। यह भारत नाम की जो अवधारणा है , जहां वर्दीधारी बल कश्मीर में घुसपैठियों और आतंकवादियों से लड़ने के लिए सभी कोनों पर भगवान की भूमिका निभाते हैं और केरल में बाढ़ से प्रभावित निर्दोष लोगों की जान बचाते हैं। जय हिन्द।

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